International Journal
2025 Publications - Volume 3 - Issue 3

Airo International Research Journal ISSN 2320-3714


Submitted By
:

डा. राज पाल

Subject
:

Sanskrit

Month Of Publication
:

September 2025

Abstract
:

संस्कृत साहित्य भारतीय संस्कृति और सभ्यता का दर्पण माना जाता है। इसमें समाज के प्रत्येक पक्ष का गहन और व्यापक चित्रण मिलता है। विशेषतः नारी के जीवन और उसकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति का विवेचन संस्कृत ग्रंथों में विविध रूपों में मिलता है। वैदिक काल से ही नारी केवल पारिवारिक दायित्वों तक सीमित नहीं रही, बल्कि वह ज्ञान, शिक्षा, धार्मिक अनुष्ठान और आर्थिक संगठन की भी सक्रिय धुरी रही है। ऋग्वेद की ऋषिकाएँ अपाला, घोषा, लोपामुद्रा, गार्गी और मैत्रेयी इस तथ्य का प्रमाण हैं कि नारी केवल दार्शनिक और धार्मिक विमर्श में ही नहीं, बल्कि सामाजिक-आर्थिक निर्णयों में भी समान भागीदार थीं।संस्कृत ग्रंथों में “स्त्रीधन” की अवधारणा विशेष रूप से उल्लेखनीय है।

Pages
:

676- 684